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प्र. 4.
उत्तर
प्र. 5. उत्तर
प्र. 6.
उत्तर
बन जाता है। अत: विराधकता व समकित के विनाश से बचने के लिए प्रतिक्रमण आवश्यक है।
प्रतिक्रमण का सार किस पाठ में आता है ? कारण सहित स्पष्ट कीजिए ।
प्रतिक्रमण का सार इच्छामि ठामि के पाठ में आता है। क्योंकि पूरे प्रतिक्रमण में ज्ञान, दर्शन, चारित्राचारित्र तथा तप के अतिचारों की आलोचना की जाती है। इच्छामि ठामि के पाठ में भी इनकी संक्षिप्त आलोचना हो जाती है, इस कारण इसे प्रतिक्रमण का सार पाठ कहा जाता है।
प्रतिक्रमण करने से क्या-क्या लाभ हैं? (1) लगे दोषों की निवृत्ति होती है। (2) प्रवचन माता की आराधना होती है।
(3) तीर्थङ्कर नाम कर्म का उपार्जन होता है।
1) व्रतादि ग्रहण करने की भावना जगती है।
(5) अपने दोषों की आलोचना करके व्यक्ति आराधक बन जाता है।
(6) इससे सूत्र की स्वाध्याय होती है।
(7) अशुभ कर्मों के बन्धन से बचते हैं।
पाँच प्रतिक्रमण मुख्य रूप से कौन से पाठ से होते हैं ? मिथ्यात्व का प्रतिक्रमण अरिहंतो महदेवो, दंसण समकित के पाठ से।
अव्रत का प्रतिक्रमण पाँच महाव्रत और पाँच अणुव्रत से प्रमाद का प्रतिक्रमण-आठवाँ व्रत, 18 पापस्थान के पाठ से । {102} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र