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प्र. 7.
उत्तर
प्र. 8.
उत्तर
प्र. 9.
उत्तर
कषाय का प्रतिक्रमण-अठारह पापस्थान का पाठ, क्षमापनापाठ, इच्छामि ठामि से।
अशुभ योग का प्रतिक्रमण इच्छामि ठामि अठारह पापस्थान का पाठ, नवमें व्रत से ।
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मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय व अशुभ योग का प्रतिक्रमण किसने किया ?
मिथ्यात्व का श्रेणिक राजा ने, अव्रत का प्रदेशी राजा ने, प्रमाद का शैलक राजर्षि ने कषाय का चण्डकौशिक सर्प ने और अशुभ योग का प्रतिक्रमण प्रसन्नचन्द्र राजर्षि ने किया। व्रत और पच्चक्खाण में क्या अन्तर है ?
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व्रत विधि रूप प्रतिज्ञा व्रत है जैसे मैं सामायिक करता हूँ। साधु के लिए 5 महाव्रत होते हैं। श्रावक के लिए 12 व्रत होते हैं। व्रत मात्र चारित्र में ही है, पच्चक्खाण चारित्र व तप दोनों में आते हैं।
पच्चक्खाण-निषेध रूप प्रतिज्ञा जैसे कि सावद्य योगों का त्याग करता हूँ अथवा आहार को वोसिराता हूँ। व्रत-करण कोटि के साथ होते हैं। पच्चक्खाण करण, कोटि बिना भी होते हैं। व्रत लेने के पाठ के अन्त में तस्स भंते से अप्पाणं वोसिरामि आता है (आहार के) पच्चक्खाण में अन्नत्थणाभोगेणं से वोसिरामि आता है। प्रतिक्रमण करने से क्या आत्मशुद्धि (पाप का धुलना)
हो जाती है ?
प्रतिक्रमण में दैनिकचर्या आदि का अवलोकन किया जाता है।
{103} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र