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प्र. 33.
उत्तर
प्र. 34. उत्तर
वह पाप है। पाप अशुभ प्रकृतिरूप है, पाप का फल कड़वा, कठोर और अप्रिय होता है पाप के मुख्य अठारह भेद हैं। पापों अथवा दुर्व्यसनों का सेवन करने से इस भव, परभव में क्या-क्या हानियाँ होती है?
(1) पापों अथवा दुर्व्यसनों के सेवन करने से शरीर नष्ट हो जाता है, प्राणी को तरह-तरह के रोग घेर लेते हैं। (2) स्वभाव बिगड़ जाता है। (3) घर में स्त्री- पुत्रों की दुर्दशा हो जाती है। (4) व्यापार चौपट हो जाता है। (5) धन का सफाया हो जाता है। (6) मकान-दुकान नीलाम हो जाते हैं। (7) प्रतिष्ठा धूल में मिल जाती है। (8) राज्य द्वारा दण्डित होते हैं (9) कारागृह में जीवन बिताना पड़ता है। (10) फाँसी पर भी लटकना पड़ सकता है। (11) आत्मघात करना पड़ता है। इस तरह अनेक प्रकार की हानियाँ इस भव में होती हैं। परभव में भी वह नरक, निगोद आदि में उत्पन्न होता है। वहाँ उसे बहुत कष्ट उठाने पड़ते हैं। कदाचित् मनुष्य बन भी जाय तो हीन जाति- कुल में जन्म लेता है। अशक्त, रोगी, हीनांग, नपुंसक और कुरूप बनता है। वह मूर्ख, निर्धन, शासित और दुर्भागी रहता है। अत: पापों अथवा दुर्व्यसनों का त्याग करना ही श्रेष्ठ है।
मिथ्यादर्शन शल्य क्या है?
जिनेश्वर भगवन्तों द्वारा प्ररूपित सत्य पर श्रद्धा न रखना एवं असत्य का कदाग्रह रखना मिथ्यादर्शन शल्य है। यह शल्य सम्यग्दर्शन का घातक है।
{110} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र