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आगमे तिविहे पण्णत्ते
तं जहा
सुत्तागमे,
अत्थागमे
दुभ
जं
वाइद्धं
वच्चामेलियं
आगमे तिविहे का पाठ
हीणक्खरं, अच्चक्खरं
पयहीणं, विणवहीणं
जोगहीणं
घोसहीणं
सुहृदिण्णां
दुपडिच्छियं
आगम तीन प्रकार का कहा गया है।
वह इस प्रकार है जैसे
सूत्र (मूल पाठ) रूप आगम, अर्थ रूप आगम ।
उभय (मूल अर्थ युक्त) रूप आगम । (आगम के विषय में जो अतिचार लगे हों) वे इस प्रकार हैं
इन आगमों में कुछ भी क्रम छोड़ कर अर्थात् पद अक्षर को आगे-पीछे करके पढ़ा हो ।
एक सूत्र का पाठ अन्य सूत्र में मिलाकर पढ़ा गया हो। (अविराम की जगह विराम लेकर अथवा स्व कल्पना से सूत्र भाष्य रचकर सूत्र में मिलाकर पढ़ा हो ) । अक्षर घटा (कम) करके, बढ़ा करके बोला हो ।
पद को कम करके, विनवरहित (अनादर भाव से) पढ़ा हो ।
मन, वचन व काया के योग रहित पढ़ा हो। उदात्त आदि के उचित घोष (उच्चारण) बिना पढ़ा हो ।
शिष्य की उचित शक्ति से न्यूनाधिक ज्ञान दिया हो।
दुष्ट भाव से ग्रहण किया हो ।
{60} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र