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अकाले कओ सज्झाओ काले न कओ सज्झाओ असज्झाइए सज्झायं
सज्झाइए न सज्झायं
दर्शन सम्यक्त्व का पाठ
अरिहंतो महदेवो जावज्जीवं सुसाहुणो गुरुणो
जिण-पण्णत्तं तत्तं इअ सम्मत्तं
माए गाहियं
परमत्थ-संथवो वा
सुदिट्ठ-परमत्थ-सेवणा वा वि वावण्ण-कुदंसण- वज्जणा
य सम्मत्त - सद्दहणा
अकाल में (असमय) स्वाध्याय किया हो । काल में स्वाध्याय न किया हो । अस्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय किया हो ।
स्वाध्याय की स्थिति में स्वाध्याय न किया हो ।
इअ सम्मत्तस्स
पंच अइयारा पेयाला
जाणिव्वा
न समायरियव्वा
तं जहा
जीवन पर्यन्त अरिहंत मेरे देव हैं। सुसाधु (निर्ग्रन्थ) गुरु हैं।
जिनेश्वर कथित तत्त्व (धर्म) सार रूप है।
इस प्रकार का सम्यक्त्व ।
मैंने ग्रहण किया है।
परमार्थ का परिचय अर्थात् जीवादि तत्त्वों की यथार्थ जानकारी करना। परमार्थ के जानकार की सेवा करना । समकित से गिरे हुए तथा मिथ्या दृष्टियों की संगति छोड़ने रूप ।
ये इस सम्यक्त्व के (मेरे) श्रद्धान हैं अर्थात्
मेरी श्रद्धा बनी रहे ।
इस सम्यक्त्व के ।
पाँच अतिचार रूप प्रधान दोष हैं। (जो )
जानने योग्य हैं । ( किन्तु )
आचरण करने योग्य नहीं है।
वे इस प्रकार हैं
{61} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र