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पौषधशाला पडिलेहिय उच्चार-पासवण-भूमि पडिलेह कर गमणागमणे पडिक्कम कर दर्भादिक संथारा संथार कर दुरूह कर करयल-संपरिग्गहियं सिरसावत्तं
धर्मस्थान अर्थात् पौषधशाला। प्रतिलेखन कर। मलमूत्र त्यागने की भूमि का। प्रतिलेखन अर्थात् देखकर के। जाने आने की क्रिया का। प्रतिक्रमण कर। डाभ (तृण, घास) का संथारा । बिछाकर। संथारे पर आरूढ़ होकर के। दोनों हाथ जोड़कर। मस्तक से आवर्तन (मस्तक पर जोड़े हुए हाथों को तीन बार अपनी बायीं ओर से घुमा) करके। मस्तक पर हाथ जोड़कर । इस प्रकार बोले। माया, निदान और मिथ्यादर्शन इन तीन शल्यों से रहित। नहीं करने योग्य।
और जो भी यह शरीर। इष्ट। कान्तियुक्त। प्रिय, प्यारा। मनोज्ञ, मनोहर। मन के अनुकूल।
मत्थए अंजलि-कटु एवं वयासी निःशल्य
अकरणिज्जं जंपियं इमं सरीरं
कंतं
पियं
मणुण्णं
मणाम
{79) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र