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अचल अटल रूप, आवे नहीं भव कूप । अनूप स्वरूप ऊप, ऐसे सिद्ध धारी हैं।।3।। कहत हैं तिलोक रिख, बताओ ए वास प्रभू ।
सदा ही उगते सूर', वन्दना हमारी है।।4। ऐसे श्री सिद्ध भगवान, दीनदयालजी महाराज, आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो हे सिद्ध भगवान! मेरा अपराध बारम्बार क्षमा करिये, मैं हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से 1008 बार वंदना नमस्कार करता हूँ। तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि, वंदामि, नमसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि। आप मांगलिक हो, आप उत्तम हो, हे स्वामिन् ! हे नाथ!
आपका इस भव, पर भव, भव भव में सदाकाल शरण होवे । 40. तीजे पद श्री आचार्य जी महाराज 36 गण करके विराजमान.
पाँच महाव्रत पाले, पाँच आचार पाले, पाँच इन्द्रियाँ जीते, चार कषाय टाले, नववाड़ सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य पाले, पाँच समिति तीन गुप्ति शुद्ध आराधे । ये 36 गुण करके सहित हैं। आठ सम्पदा-1. आचार सम्पदा, 2. श्रुत सम्पदा, 3. शरीर सम्पदा, 4. वचन सम्पदा, 5. वाचना सम्पदा, 6. मति सम्पदा, 7. प्रयोगमति सम्पदा और 8. संग्रह परिज्ञा
सम्पदा सहित हैं। 1. सायंकाल के समय “सदा ही सायंकाल बोलें।"
{34} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र