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लोगस्स (तीर्थङ्कर स्तुति) सूत्र
लोगस्स उज्जोयगरे धम्म-तित्थ
जिणे
अरिहंते कित्तइस्स
चवीसंपि केवली
उसभमजयं च वंदे
संभवमभिणंदणं च
सुमई च
परमप्यहं सुपासं
जिणं च
चंदप्यहं वंदे
सुविहिं च पुप्फदंतं
सीयल-सिज्जंस
वासुपूज्जं च विमलमणतं च जिणं
धम्मं संतिं च वंदामि
कुंथुं अरं च मल्लिं वंदे
मुणिसुब्वयं नमिजिणं च
लोक में प्रकाश (उद्योत ) करने वाले । धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले “धर्म तीर्थङ्कर" (चतुर्विध संघ के संस्थापक) । राग द्वेष के विजेता जिनेश्वर ।
(ऐसे) अरिहंतों का कीर्त्तन (स्तुति) । सभी चौबीसों तीर्थकरों की
ऋषभदेवजी व अजितनाथजी को वन्दना
करता हूँ।
सम्भवनाथजी व अभिनन्दनजी को सुमति नाथ जी को और पद्मप्रभजी, सुपार्श्वनाथजी को । और जिनेश्वर ।
चन्द्रप्रभ को वन्दना करता हूँ ।
सुविधिनाथजी जिनका दूसरा नाम पुष्पदंत
जी है उनको तथा
शीतलनाथजी, श्रेयांसनाथजी को।
और वासुपूज्यजी को व
विमलनाथजी और अनन्तनाथजी जिनेश्वर को एवं
धर्मनाथजी और शान्तिनाथजी को वन्दना करता हूँ ।
कुंथुनाथजी, अरनाथजी और मल्लिनाथजी को वन्दना करता हूँ। मुनिसुव्रत स्वामीजी और नमिनाथजी (जिन) को और
{51} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र