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सोते जागते, हनन किया हो, हनन कराया हो, हनताँ प्रति अनुमोदन किया हो, छेदा हो, भेदा हो, किलामना उपजाई हो तो मन वचन काया करके (18,24,120) अठारह लाख चौबीस हजार एक सौ बीस प्रकारे जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।
47.क्षमापना-पाठ खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमंतु मे । मित्ति मे सव्व भूएसु, वे मज्झं न केणई।।1।। एवमहं आलोइय-निन्दिय-गरिहिय-दुगुंछियं सम्मं । तिविहेणं पडिक्कतो, वंदामि जिण-चउव्वीसं ।।2।।
इसके बाद अठारह पाप स्थान का पाठ बोलें। फिर तिक्खुत्तो के पाठ से तीन बार वंदना करें। पहला सामायिक, दूसरा चउवीसत्थव, तीसरी वंदना, चौथा प्रतिक्रमण ये चार आवश्यक समाप्त हुए।
पाँचवाँ आवश्यक पाँचवें आवश्यक की आज्ञा है कहकर. निम्न पाठ बोलें।
48. प्रायश्चित्त का पाठ देवसिय'-पायच्छित्त-विसोहणत्थं करेमिकाउस्सग्गं ।
इसके बाद नवकार मंत्र, करेमि भंते, इच्छामि ठामि और तस्सउत्तरी का पाठ झाणेणं तक बोल कर चार लोगस्स का काउस्सग्ग' ऐसा बोलकर अप्पाणं वोसिरामि कहने के साथ ही काउस्सग्ग करें।
1. प्रात:काल में राइय, पक्खी को पक्खिय, चौमासी को चाउम्मासियं और संवत्सरी को
संवच्छरिय बोलें। देवसिय व राइय को 4, पक्खी को 8, चौमासी को 12, संवत्सरी को 20 लोगस्स का काउस्सग्ग करें।
{41} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र
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