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कहत है तिलोक रिख, ज्ञान भानु परतिख।
ऐसे उपाध्याय जी को, वन्दना हमारी है।।4।। ऐसे श्री उपाध्याय जी महाराज मिथ्यात्व रूप अन्धकार के मेटणहार, समकित रूप उद्योत के करणहार, धर्म से डिगते प्राणी को स्थिर करने वाले, सारए, वारए, धारए इत्यादि अनेक गुण करके सहित हैं। ऐसे श्री उपाध्यायजी महाराज आपकी दिवस सम्बन्धी अविनय आशातना की हो तो, हे उपाध्याय जी महाराज ! मेरा अपराध बारम्बार क्षमा करें। मैं हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से 1008 बार वन्दना नमस्कार करता हूँ। तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेमि, वंदामि, नमसामि, सक्कारेमि, सम्माणेमि, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं, पज्जुवासामि, मत्थएण वंदामि ।।। आप मांगलिक हो, आप उत्तम हो, हे स्वामिन् ! हे नाथ!
आपका इस भव, पर भव, भव भव में सदा काल शरण होवे। 42. पाँचवें पद 'नमो लोए सव्व साहणं' अढ़ाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र रूप
लोक के विषय में सर्व साधुजी महाराज जघन्य दो हजार क्रोड़, उत्कृष्ट नव हजार क्रोड़ जयवन्ता विचरें। पाँच महाव्रत पाले, पाँच इन्द्रिय जीते, चार कषाय टाले, भाव सच्चे, करण सच्चे, जोग सच्चे, क्षमावंत, वैराग्य वंत, मन समाधारणया, वय समाधारणया, काय समाधारणया, नाण सम्पन्ना, दसण सम्पन्ना, चारित्त सम्पन्ना, वेदनीय समाअहियासन्निया, मारणंतिय
{37} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र