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समाअहियासन्निया ऐसे सत्ताईस गुण करके सहित हैं । पाँच आचार पाले, छहकाय की रक्षा करे, सात भय त्यागे, आठ मद छोड़े, नववाड़ सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य पाले, दस प्रकारे यति धर्म धारे, बारह भेदे तपस्या करे, सतरह भेदे संयम पाले, अठारह पापों को त्यागे, बाईस परिषह जीते, तीस महामोहनीय कर्म निवारे, तैंतीस आशातना टाले, बयालीस दोष टाल कर आहार पानी लेवे, सैंतालीस दोष टाल कर भोगे, बावन अनाचार टाले, तेड़िया ( बुलाये) आवे नहीं, नेतीया जीमे नहीं, सचित्त के त्यागी, अचित्त के भोगी, लोच करे, नंगे पैर चले इत्यादि कायक्लेश और मोह ममता रहित हैं । सवैया- आदरी संयम भार, करणी करे अपार । समिति गुप्तिधार, विकथा निवारी है ।।1।। जया करे छः काय, सावद्य न बोले वाय । बुझाय कषाय लाय, किरिया भण्डारी है ।।2।। ज्ञान भणे आठों याम, लेवे भगवन्त नाम । धरम को करे काम, ममता कूँ मारी है ।। 3 ।। कहत है तिलोक रिख, करमों को टाले विख । ऐसे मुनिराज ताकूँ, वन्दना हमारी है ।।4।। ऐसे मुनिराज महाराज आपकी दिवस संबंधी अविनय आशातना की हो तो हे मुनिराज महाराज ! मेरा अपराध बारम्बार क्ष करिये। मैं हाथ जोड़, मान मोड़, शीश नमाकर तिक्खुत्तो के पाठ से 1008 बार वन्दना नमस्कार करता हूँ।
{38} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र