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गुण करके सहित हैं, ग्यारह अंग का पाठ अर्थ सहित सम्पूर्ण जाने, चौदह पूर्व के पाठक और बत्तीस सूत्रों के जानकार हैंग्यारह अंग-आचारांग, सूयगडांग, ठाणांग, समवायांग, भगवती, ज्ञाताधर्मकथा, उवासगदसा, अंतगडदसा, अणुत्तरोववाइय, प्रश्नव्याकरण, विपाक सूत्र ।
बारह उपांग-उववाई, रायप्पसेणी, जीवाजीवाभिगम, पन्नवणा, जम्बूदीवपन्नत्ती, चन्दपन्नत्ती, सूरपन्नत्ती, निरयावलिया, कप्पवडंसिया, पुप्फिया, पुप्फचूलिया, वण्हिदसा।
चार मूल सूत्र - उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, नन्दीसूत्र और अनुयोगद्वार सूत्र ।
चार छेद-दशाश्रुत स्कन्ध, वृहत्कल्प, व्यवहार सूत्र, निशीथ सूत्र और
बत्तीसवाँ आवश्यक सूत्र - तथा अनेक ग्रन्थों के जानकार, सात नय, चार निक्षेप, निश्चय, व्यवहार, चार प्रमाण आदि स्वमत तथा अन्यमत के जानकार। मनुष्य या देवता कोई भी विवाद में जिनको छलने में समर्थ नहीं, जिन नहीं पण जिन सरीखे, केवली नहीं पण केवली सरीखे हैं।
सवैया- पढ़त इग्यारह अंग, कर्मों से करे जंग | पाखंडी को मान भंग, करण हुशियारी है ।।1।। चवदे पूर्वधार, जानत आगम सार । भवियन के सुखकार, भ्रमता निवारी है ।।2।। पढ़ावे भविक जन, स्थिर कर देत मन । तप करि तावे तन, ममता को मारी है ॥13 ॥ {36} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र