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39. दूजे पद श्री सिद्ध भगवान महाराज 14 प्रकारे पन्द्रह भेदे
अनन्त सिद्ध हुए हैं। आठ कर्म खपाकर मोक्ष पहुँचे हैं। (1) तीर्थ सिद्ध, (2) अतीर्थ सिद्ध, (3) तीर्थङ्कर सिद्ध, (4) अतीर्थङ्कर सिद्ध, (5) स्वयं बुद्ध सिद्ध, (6) प्रत्येक बुद्ध सिद्ध, (7) बुद्ध बोधित सिद्ध, (8) स्त्रीलिंग सिद्ध, (9) पुरुषलिंग सिद्ध, (10) नपुंसकलिंग सिद्ध, (11) स्वलिंग सिद्ध, (12) अन्यलिंग सिद्ध, (13) गृहस्थलिंग सिद्ध, (14) एक सिद्ध, (15) अनेक सिद्ध । जहाँ जन्म नहीं, जरा नहीं, मरण नहीं, भय नहीं, रोग नहीं, शोक नहीं, दु:ख नहीं, दारिद्र्य नहीं, कर्म नहीं, काया नहीं, मोह नहीं, माया नहीं, चाकर नहीं, ठाकर नहीं, भूख नहीं, तृषा नहीं, ज्योत में ज्योत विराजमान सकल कार्य सिद्ध करके चौदह प्रकारे पन्द्रह भेदे अनन्त सिद्ध भगवन्त हुए हैं जो-(1) अनन्त ज्ञान, (2) अनन्त दर्शन, (3) अव्याबाध सुख, (4) क्षायिक समकित, (5) अटल अवगाहना, (6) अमूर्त, (7) अगुरु-लघु, (8) अनन्त आत्म सामर्थ्य, ये आठ गुण कर के सहित हैं। सवैया- सकल करम टाल, वश कर लियो काल ।
मुगती में रह्या माल, आत्मा को तारी है।।1।। देखत सकल भाव, हुआ है जगत् राव । सदा ही क्षायिक भाव, भये अविकारी है।।2।। {33} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र