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आगे जाकर पाँच आस्रव सेवन का पच्चक्खाण, जावज्जीवाए एगविहं तिविहेणं न करेमि', मणसा, वयसा, कायसा एवं छठे दिशिव्रत के पंच-अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं-उड्ड दिसिप्पमाणाइक्कमे, अहोदिसिप्पमाणाइक्कमे, तिरियदिसिप्पमाणाइक्कमे, खित्तवुड्डी, सइ-अंतरद्धा, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।। सातवाँ व्रत-उपभोग परिभोगविहिं पच्चक्खायमाणे उल्लणियाविहि, दंतणविहि, फलविहि, अब्भंगणविहि, उवट्टणविहि, मज्जणविहि, वत्थविहि, विलेवणविहि, पुप्फ-विहि, आभरणविहि, धूवविहि, पेज्जविहि, भक्खण-विहि, ओदणविहि, सूपविहि, विगयविहि, सागविहि, महुरविहि, जीमणविहि, पाणियविहि, मुखवासविहि, वाहणविहि, उवाणहविहि, सयणविहि, सचित्तविहि, दव्वविहि इन 26 बोलों का यथा परिमाण किया है, इसके उपरान्त उपभोग-परिभोग वस्तु को भोग निमित्त से भोगने का पच्चक्खाण जावज्जीवाए एगविहं तिविहेणं न करेमि, मणसा, वयसा, कायसा एवं सातवाँ व्रत उपभोग परिभोग दुविहे पण्णत्ते तं जहा, भोयणाओ य कम्मओ य भोयणाओ समणोवासएणं पंच-अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं
1. 'एगविह' के स्थान पर 'दुविहं' और 'न करेमि' के स्थान पर 'न करेमि, न कारवेमि' भी बोलते हैं।
{25) श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र