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11. ग्यारहवाँ पडिपुण्ण पौषध व्रत-असणं, पाणं, खाइमं,
साइमं का पच्चक्खाण, अबंभ सेवन का पच्चक्खाण, अमुकमणि सुवर्ण का पच्चक्खाण, मालावणग्गविलेवण का पच्चक्खाण, सत्थमूसलादिक सावज्जजोग सेवन का पच्चक्खाण, जाव अहोरत्तं पज्जुवासामि दुविहं तिविहेणं न करेमि, न कारवेमि, मणसा, वयसा, कायसा ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररूपणा तो है, पौषध का अवसर आये, पौषध करूँ तब फरसना करके शुद्ध होऊँ एवं ग्यारहवाँ प्रतिपूर्ण पौषध व्रत के पंच-अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं जहा ते आलोउं-1. अप्पडिलेहियदुप्पडिलेहिय-सेज्जासंथारए, 2. अप्पमज्जियदुप्पमज्जिय-सेज्जा-संथारए, 3. अप्पडि-लेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चार-पासवण-भूमि, 4. अप्पमज्जियदुप्पमज्जिय-उच्चार-पासवण-भूमि, 5. पोसहस्स सम्म अणणुपालणया, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं॥ बारहवाँ अतिथि संविभाग व्रत-समणे निग्गंथे फासुयएस-णिज्जेणं, असण-पाण-खाइम-साइमवत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं, पडिहारिय-, पीढ-फलग-सेज्जासंथारएणं, ओसह-भेसज्जेणं, पडिलाभेमाणे विहरामि, ऐसी मेरी सद्दहणा प्ररूपणा तो है, साधु-साध्वियों का योग मिलने पर निर्दोष दान हूँ, तब फरसना करके शुद्ध होऊँ एवं बारहवें अतिथि संविभाग
{28} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र