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श्रमण सूक्त
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सुहसायगस्स समणस्स
सायाउलगस्स निगामसाइस्स ।
उच्छोलणापहोइस्स
दुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ।।
तवोगुणपहाणस्स
उज्जुमइ खतिसजमरयस्स । परीसहे जिणतस्स
सुलहा सुग्गइ तारिसगस्स ।। ( दस ४ २६, २७ )
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जो श्रमण सुख का रसिक, सात के लिए आकुल, अकाल मे सोने वाला ओर हाथ, पैर आदि को बार-बार धोने वाला होता है उसके लिए सुगति दुर्लभ है।
जो श्रमण तपोगुण से प्रधान, ऋजुमति, क्षान्ति तथा सयम में रत ओर परीषहो को जीतने वाला होता है उसके लिए सुगति सुलभ है।
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