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देव ]
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लो जैन जगत के तीर्थङ्कर मेरा प्रणाम लो । दो वीतरागता का वर, वन्दन निष्काम लो ॥
तुम तीर्थ नही तीर्थकर, क्या गुण गरिमा गाए । भव- सिन्धु-भवर मे भटके, (इन) भक्तो को थाम लो ॥ १ ॥
तुम सकल चराचर द्रष्टा, अविकल विज्ञान हो । तुम ग्रमित शक्ति, दृढ दर्शन, अविचल विश्राम लो ॥२॥
तुम तीन भुवन के नायी, ( पर) उत्तरदायी नहीं । सुस दुस जय निज कर्माश्रित, तुम ज्योतिर्धाम लो || ३ ||
तुम श्रात्म-विजेता नेता, 'तुलसी' के त्राण हो । तुम सत्य शिव सुन्दर, स्तवना आठू याम लो ॥४॥
तय-प्रभु पाश्वदेव के चरणो मे
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