Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ वीतराग विडम्बना सी देस दिल मे दर्द छाया। देव । दो दर्शन तुम्हारा शान्ति जिन में शरण आया ॥२॥ समारोहो से सुसज्जित आपकी होती सवारी। धी धी धपमप घि धि की धिक्कट वज रहेातोद्य भारी। सृजत रथ यात्रादि मिप हिमा, अहिंसा के पुजारी। जव निहारु नयन से हो हृदय मे दुविधा दुधारी। कहा वह विज्ञानमय विभुवर? कहा वह छद्म छाया? देव । दो दर्शन तुम्हारा शान्ति जिन में शरण पाया ।।३।। चेतनामय देव को पापाणमय कैसे बनाऊ ? जो बने पापाण के कैसे उन्हे जिन-रूप गाऊ ? सर्वतन्न स्वतन्त्र जो, कैसे दिवासे मे विठाऊ? जो बने बन्दी, उन्हे कैसे विनय से सर भुकाऊ? अमल अज अविकार साक्षात्कार करने मन उम्हाया। देव । दो दर्गन तुम्हारा भान्ति जिन मैं शरण पाया ॥८॥ रेव]

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124