Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons
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________________ स्वामी भिखणजी। प्रगट्यो एक नयो उद्योत, जागी जग मे जगमग ज्योत / प्रवह्यो अटल धर्म को स्रोत, सागी भवसागर की पोत / / भीखण भीखण नाम स्यू रे म्हारो हुवै कलेजो हेम / सुमरण करता सकट भाग, जागे धार्मिक प्रेम // 1 // पगा लह्यो पथ साक्डो रे निश्चित निज गन्तव्य / जिन-वाणी रे सवल सहारै वद्धमूल मन्तव्य / / 2 / / निरभिमान नि सगता रे निर्भय हृदय सजोर / रुढिवाद रो कट्टर शत्रु भूलो म' मजन्यो चोर // 3 // अनुचित ही समझयो सदा रे अव्रत-व्रत रो मेल / उदाहरण है अम्ब-धतूरो, घी-तम्बासू मेल // 4 // बत-महाव्रत रो आतरो रे देखो मोला दोय / शिष्य सुगुरु सवाद सलूणो, मक्खन लियो विलोय // 5 // चूहा-विल्ली रो चल्यो रे सदिया लग हुडदग। पर बावा री बज्जर छाती, झूकी न झूठे जग // 6 // निज निन्दा काना सुणी रे, रह्यो प्रसन्न मन पूज / गुण मुण नहिं कहिं हृदय फूलायो, सत्पुम्पा री सूझ // 7 // लय-~म्हारा पागणा सूना [111

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