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तू मन मन्दिर में प्राजा, तेरापथ के अधिराजा, ओ ! भिक्षु ! भिक्षु-गणराजा, वह सांवरी सूरत दिखाजा, स्मृतिपट पर चित्र खिचा जा। तू मन मन्दिर में आजा ॥
दीपां मां के लाल दुलारे, वल्लूशाह के कुल उजियारे, मरुधर रत्न चमकते तारे, सारे महिमा महका जा। तू मन मन्दिर में प्राजा॥
त्याग-वृत्ति जो तुमने धारी, भर यौवन जग सम्पत्ति छारी, विषम समस्या हल कर डारी, सारी वह बात बता जा। तू मन मन्दिर में आजा ।।
सत्याग्रह की सबल प्रणाली, चित्र ! कहां से ढूंढ निकाली, उत्पथ तज निज प्रात्म-उजाली, फिर से वह ज्योति जगा जा। तू मन मन्दिर में आजा ।।
लय-मेरा रंग दे तिरंगी चोला
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[श्रद्धेय के प्रति