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अमर रहेगा धर्म हमारा
जन-जन मन अधिनायक प्यारा, विश्व विपिन का एक उजारा, असहायों का एक सहारा, सब मिल यही लगायो नारा ।।
धर्म धरातल अतुल निराला, सत्य, अहिसा स्वरूप वाला, विश्व-मैत्री का विमल उजाला, सत्पुरुपों ने सदा रुखारा ॥१॥
व्यक्ति-व्यक्ति में धर्म समाया, जाति-पांति का भेद मिटाया, निर्धन, धनिक न अन्तर पाया, जिसने धारा, जन्म सुधारा ॥२॥
राजनीति से पृथक् सदा है, जग-झंझट से धर्म जुदा है, मोक्ष-प्राप्ति का लक्ष्य यदा है, आत्म-शुद्धि की वहती धारा ॥३॥
आडम्बर में धर्म कहां है, स्वार्थ-सिद्धि में धर्म कहां है, शुद्ध साधना धर्म वहां है, करते हम हर वक्त इशारा ||४|| लय-बना रहे आदर्श हमारा
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[ श्रद्धेय के प्रति