Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 102
________________ श्री महावीर चरण मे मादर श्रद्धा-सुमन सझाऊ मैं । हार्दिक भक्ति-सलिल स्यू सीच-मीच कलिया विकमाऊ मैं ॥ ईश्वर अखिलेश्वर, प्रभु परमातम परमेश्वर। प्राण-प्रिय जैन जिनेश्वर, भास्वर अविनश्वर हृदय बसाऊ मैं ॥१॥ नही जिन जग कर्ता, नही शकर सम सहर्ता । है तीन भवन रा भर्ता, अविकार अमल प्रभु लक्षण गाऊ मैं ॥२॥ नहिं घट-घट व्यापी, यद्यपि घट-घट का ज्ञापी । सूरज सो ज्ञान प्रतापी, मब पाप पक शोषण कर पाऊ मैं ॥३॥ नहिं भगवन् भोगी, नहिं योगाराधक योगी। साकार इतर उपयोगी, अवियोगो मिलन मन सदा लुभाऊ मैं ॥४॥ नय-देखो वीर जिनेश्वर वन्दन राय उदाई पावै रे देव [८९

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