Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons
View full book text
________________
प्रतिभा रो अप्रतिम उजास, आत्म अलौकिकता ग्राभास | विश्व विकास यथा घृमणी ||५||
सरधा से रे अजोड निचोड, नहि कोई रंच रह्यो भकभोड़ । पड़सी सब नं स्वीकरणी ||६||
शासन मन्दिर री रे दिवाल, निज आशय सम करी सुविशाल । ऊंडी नीव अतीव
घणी ॥७॥
ε'६]
वर मरयाद लोहमय बीम, ढाल ढाल - मय ढोला धड़ीम | मति सकलना कली वणी ||5|
चित्र विचित्र भान्ति दृष्टान्त, गुरु रज्जा सुख सज्जा शान्त सयन कर सुखे मुनि श्रमणी || ||
सारो जगत हुयो इक ओर, एक प्रभु कियो काम कठोर । आरे इसो न जण्यो जणणी ॥१०॥
करणी करणी पड़सी याद, दीपांगज री धर आह्लाद । धुर धारी देह उद्धरणी ॥११॥
तारण आत्म तपस्या ताप, प्रारम्भी भूतल बतका नही जाये
आताप ।
वरणी ॥ १२ ॥
[ श्रद्धेय के प्रति

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124