Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons
View full book text
________________
१०४]
चर् कुशाग्र प्रभु बुद्धि, ग्रनुपम गुण ग्रात्म विशुद्धि | क्षण-क्षण अनुकरण कराओ ||७||
है पृथक्-पृथक् युग पन्था, अपवर्ग 'रु संसृति गन्ता । मन्तव्य भव्य अपनाओ || ८ ||
वा सगठन की शैली, इक नायक नीति नवेली | कर याद हर्ष उमड़ावो || ||
मुख धन्य-धन्य ध्वनि गाग्रो, जयकार अपार सुनाओ । वाह-वाह कहि वदन उछावो ॥१०॥
पट
भारमल्ल, ऋषिराया,
जय, मध, माणक कहिवाया । डालिम पट छोगां छावो ||११||
दो सहस्र दोय चउमासो,
डूंगरगढ़ अतुल उजासो । चिउ तीरथ चोक पुरावो ||१२||
सैतीस श्रमण सुखकारी, श्रमणी चवपन इकतारी । 'तुलसी' गणि रंग रचावो ||१३||
वि० सं० २००२ चरम महोत्सव, श्री डूंगरगढ़ (राज० )
[ श्रद्धेय के प्रति

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124