Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 108
________________ मैं समरु गुरु भिक्सन नाम, वा ममरु गुरु भिक्खन काम । वा गुरु भिक्खन को करणी, भोर ममय भजू भिक्षुगणी ॥ रटू भिक्षुगगो, ममरू भिक्षुगणी, भिक्षुगणी म्हारै मुकुटमणी। रटू भिक्षुगणी, भिक्षुगणी तेरापन्य धणी ॥ भिक्खन नाम वडो अभिराम, भिक्खन नाम हृदय विश्राम । सरल गुभकर शिव सरणी ॥१॥ नाम करू क्षण यात्माराम, वर्णनातीत मुगुरु कृत काम । स्थित चित मुणल्यो मयलगुणी ॥२॥ धुर नृपनगर को काम उदा, साचो श्रावक वर्ग समग्र । दिल अव्यग्र यया धरणी ॥३॥ दोय वरम चरचा गुरु पास, नहि निज अपचारी अभिलाप । है स्यागश पर नूज भणी ॥४॥ पामो जाति गु [५

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