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जय जय धम सघ अविचल हो, मघ सघपति प्रेम अटल हो।
हम सवका सौभाग्य मिला है, प्रभु यह तेरापथ मिला है, एक सुगुरु के अनुगामन मे, एकाचार विचार विमल हो ||१||
दृटतर सुन्दर सघ-मगठन, क्षीर-नीर सा यह एकोपन, है अक्षुण्ण मघ-मर्यादा, विनय और वात्मल्य अचल हो ॥२॥
सघ-सम्पदा वढती जाए, प्रगति शिखर पर चढती जाए, भैक्षव-शामन नन्दनवन को, मौरभ से सुरभित भूतल हो ॥३॥ 'तुलसी' जय हो सदा विजय हो, मघ चतुष्टय बल अक्षय हो, श्रद्धा, भक्ति बहे नम-नम मे, पग-पग पर प्रतिपल मगल हो ॥४)
सय-प्रम रहा धम
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