Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 72
________________ २५ देव | चढाए श्रीचरणो मे क्या ऐसा उपहार हो । जिसे देखकर जनता मे जागृत सच्चे संस्कार हो || हँसती सिलती कोमल कलिया ऋञ्जलिया क्यो वन रही ? कर स्पर्श करना भी जिनका श्रागम सम्मत हे नही । वह क्या भेंट तुम्हारी ? जहा पर प्राणो पर सहार हो ॥१॥ स्वर्ण रजत की वे मुद्राए, मणि भूषण ग्रम्लान जो । हीरे, माणिक, मूगे, मोती, विस्तृत वाहन यान जो । काचन त्यागी को यह कैसे सामग्री स्वीकार हो ||२|| तैल चित्र या प्रस्तर प्रतिमा, घडे कि सुन्दर घाट से । उच्च शिखर धर वर मन्दिर मे करे प्रतिष्ठित ठाट से । 2 क्या यह पटु प्रतिभा का परिचय ? चेतन जड ग्राकार हो ॥३॥ साय प्रातरुपासना । श्रद्धा करें समर्पित प्रतिदिन, स्वर-लहरी संगीत सुबाए, पास न आए वासना । क्या हम सोचें ? श्रात्म-साधना केवल बाह्याचार हो ||४|| चिर, सुम्थिर साहित्य बनाए स्मारक के अणु-उद्जन बम से न नष्ट हो घरें प्रतल फिर भी यदि क्या मानव मे दानवता का मय--नगरी नगरी द्वारे-द्वारे गुद] सदर्भ मे । भूगर्भ मे । संचार हो ॥५॥ [ve

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