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गुरु ]
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मन सुमर-सुमर नित भिक्षु नाम हो जायेंगे सव सिद्ध काम |
अजरामर अक्षय ग्रटल धाम, मन सुमर-सुमर नित भिक्षु नाम ।
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जो सन्त-प्रवर भव सिन्धु पोत, वहते वन निर्भय प्रतिस्रोत । जन-जन के जो प्रेरणा स्रोत, कैसा जिनका लाघव ललाम ॥१॥
पावन पुरुषोत्तम के ग्रार्हद् दर्शन के
अध्यात्मवाद मे साधनाराम जो
सपूत,
अग्रदूत |
अनुस्यूत, श्रविश्राम ||२||
प्रवृत्तिया सहज ही प्रसकीर्ण, जो अन्ध रूढिया जीर्ण-शीर्ण 1 कर एक-एक सबको विदीर्ण, उत्तीर्ण हुए प्रति दृढ स्थाम ॥३॥
शास्त्रम्बुधि का अभिनव निचोड, धार्मिकता को दे नया मोड | सारे जीवन को जोडतोड, तेरापन्थ सुपरिणाम ॥४॥
उसका
लय-अभिनन्दन भारत के सपूत
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