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मगल गान !
मगल आज मनाए गाए जय-जय जय हे जय जिन शामन शेखर । सुन्दर जय अभिधान ॥
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प्रतिपल ग्रात्म-साधना मे जय-जीवन श्रोत-प्रोत | फैला जैन जगत मे अभिनव एक रश्मि का स्रोत । शैशव वय सयम की मुपमा कैसी उज्ज्वल शान ॥ १॥
प्राकृत कवि, नैसर्गिक शासक, कलाकार साकार । लेखक, वक्ता, सघ विभर्ता, वैज्ञानिक ग्रविकार । रूप अनेक, एक रसना यह क्या कर सके बयान ॥२॥
वज्र-कठोर आत्म-वल ग्रविक्ल, हृदय कुसुम सुकुमाल | तेरे अनुशासन मे यासित रहे वृद्ध, युव, वाल । चित्र न होगा किसे ? देस कर मुगठित संघ - विधान ||३||
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वर्ण सावरे मे भो कैसा अद्भुत अनुपम प्रोज क्या मानव की बात, निकट टिक सका न मत्त मनोज । धन्यवाद के पान मातृ-पितु,
'कल्लु', 'आईदान' ॥४॥
नय भारत में दो ना
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धार्मिक, राजनीतिविद निर्मल, प्रगति पथ के पुष्ट प्रणेता, ग्रक्षय तूर्यासन पर सूर्य तेज वर, प्रगटे
गुरु ]
कुशल गच्छ नेतार |
श्रुत पुण्य
भण्डार | निधान ||५||
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