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तैरापथ के सप्तम गणपति 'डालिम' दिवस मनाएगे । उज्जयिनी गुरु-जन्मभूमि मे गौरव गाएगे ||
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नौ मे जन्म, तेवीमे दीक्षा आत्म-साधना पाई है । बहुश्रुति सम्यग् वने विकसित विभुताई है। इकतीसे गुरुदेव दया से ग्रागेवान कहाएगे ॥ १॥
उन बिहारी देश विदेशे विचर वरी विस्याति जो । अद्भुत अनुभव प्राप्त किए क्या वर्णे रयाति जो । बड़े भाग्य मे शासन मे ऐसे शामनपति आएंगे ||२||
आकस्मिक घटना ने जो इतिहास नवीन बनाया है । डालिम के उस दिव्य रूप ने हृदय डुलाया है । भैक्षव गण के बच्चे-बच्चे जुग-जुग शीश झुकाएगे ||३||
प्रवचनकार रूप मे जब मण्डप मे मण्डित सिंह गजना, मुदिर घोप अपनापन हो समवसरण मे विरले जो नही डगमग शीश
लय
ग्रोजस्वी, वचस्वी और यशस्वी हो तो ऐसे हो । सुनते हाक प्रतिद्वन्द्वी मानो भूमि मे पैसे हो । सहजतया चरणारविन्द को विरले हो छ् पाएंगे ||५||
गुरु ]
होते थे । खोते थे । डुलाएगे ॥ ४ ॥
- मीखणजी का चेला दशन वेगा-वगा दीज्यो जी
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