Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ सव जीवों के तुम मित्र रहे, व्याख्या मे व्यक्ति विचित्र रहे, आत्मा से पूर्ण पवित्र रहे, आलोकयुक्त वह अनुकम्पन भर दो ! भर दो ! भर दो ! ॥५॥ तुमने नव-नव उन्मेष दिए, तुमने नव-नव उपदेश दिए, तुमने नव-नव आदेश दिए, वह ओज भरा दृढ़ अनुशासन भर दो ! भर दो ! भर दो ! ॥६॥ संसृति में जीवित संस्कृति हो, संस्कृति में अभिनव जागृति हो, जागृति मे धृति हो, अविकृति हो, 'तुलसी' में वह अन्तर-दर्शन भर दो! भर दो ! भर दो ! ॥७॥ वि० सं० २०१७, चरम महोत्सव, राजनगर (राज.) [श्रद्धेय के प्रति

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124