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गुरुदेव । तुम्हारे चरणो मे ये शीश स्वय भुक जाते है । तव वाडमय अमृत करणो मे ये हृदय हिलोरे खाते है ||
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क्या वर्णन हो उपकारो का, जो जीवन जटिल समस्या है । उसका भी सुन्दर समाधान पाया, हम प्रकट दिसाते है || १॥
कैसी यो विशद विराट भावना जन-जन के उद्धरने की । भयभीतो के भय हरने की, हम सुमर सुमर सुख पाते हैं || २ ||
वह व्याख्या विरल अहिंसा की, हिंसा की झलक जरा न जहा । जो विश्व मैत्री का विमल रूप, जन-जन जिसको अपनाते है || ३॥
खुद जागो और जगाओ जग को, यही दया है दान यही । इसमे सबका उत्थान मान, जन-जन मे जागृति लाते हे ||४||
संगठन का कैसा जादू, किया तुमने सावरिये साधु झगडो की जडे जला डाली, हम सव वलिहारी जाते हे ||५|
नही शिथिलाचार पनप पाया, सयम की रही छत्र छाया । श्री वीर पिता के वीर पुत्र । तेरापथ हम सरसाते है || ६ ||
वह अटल रहे मर्यादा तेरी, लोह लेखिनी से जो लिखी । समवेत चतुष्टय श्वेत-सघ माघोत्सव आज मनाते है ||७||
वि० सं० २०११, मर्यादा महोत्सव, बम्बई
लय- घुतश्याम तुम्हारे द्वारे पर
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