Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 60
________________ वन्दन हो, अभिनन्दन हो, ये तन-मन चरण चढाए हम । दीपा नन्दन आज तुम्हारी, स्मृति मे श्रुति सरसाए हम ।। 'जाए सद्धाए निक्खत्तो” इमी पक्ष को लक्ष्य बना। वज्र हृदय बन चले अकेले, इसीलिए तुम महामना । कभी न की परवाह राह पर, प्रतिपल पलक विछाए हम ॥१॥ 'पडिम पडिवज्जिया मसाणे प्रथम श्मशान स्थान पाया। अन्वेरी ओरी पा, मन नहीं भय-भैरव से धवराया। बने पथिक से पन्याधिप, तेरापन्य कथा सुनाए हम ।।२।। 'अन्त समे मनिज्ज छप्पिकाए', इस पथ को अपनाया। दया-दान सिद्धान्त शान्तचित्त, सही रूप से समझाया। आवश्यकता तृप्ति धर्म है, आग्रह क्यो कर पाए हम ।।३।। 'पुटवी समो मुणी हवेज्जा,' वीर वाक्य को अपना कर । उग्न विरोघ विनोद समझकर, सहे परीपह भीषणतर । फलत सत्य अहिंसा को अव, विजय-ध्वजा फहराए हम ॥४॥ 'तवसा धुणई पुराण पावग' सफल बना इस शिक्षा को। घोर तपस्या आतापन सह वाह वाह ! तीव्र तितिक्षा को। मानी फिर' स्थिर पाल' 'फतह' की, वाणी क्यो विसराए हम ||५|| 'मज्झायम्मि रयोसया, जीवन में खूब उतार लिया । मरम सुगम अडतीस सहल पद्यो का मुन्दर सृजन किया। दृट अनुगासन, विमल व्यवस्था, की क्या वात वताए हम ।।६।। ____ -~प्रनुभव विनय मदा सुख मनुभव मुष्] [४७

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