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वढे चलो सयम मे विनयी, प्रात्म समपर्णकारी। श्रीप्राचार्य-चरण मे घरकर जीवनचर्या सारी। फिर विचरो अप्रतिवद्ध सदा यह शिवपथ सरल सुगम्य रे ॥६॥
सीमा मे रहना है सकट, यह दिल की नादानी । वाहर पड़ा कि सडा, प्रवाहाश्रित पूजाता पानी। चन्देरी उत्सव मे 'तुलसी' सव सोचें क्षण विधम्य रे ॥७॥
वि० स० २०१४, मर्यादा महोत्सव, लाडनू (राज.)
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