Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 64
________________ मत मारो मे अधिकृत स्प अहिंसा का अभ्यर्थन है। और बचाओ की व्याप्ति हिमा का गुप्त ममर्थन है ।। ऐसे सूक्ष्मेक्षण मे कैसा आध्यात्मिक अपनत्व मिला। जीवन को आलोकित करने वाला अभिनव तत्त्व मिला ॥३॥ दया पात्र हैं वे वेचारे क्या उन पर हम रोप करें। अपना पाप छुपाने करते परनिन्दा जो जोश भरे ।। सहे विरोव विनोद समझ यह वीरो का वीरत्व मिला। जीवन को आलोकित करने वाला अभिनव तत्त्व मिला ॥४॥ शिष्य-प्रथा की वह विडम्बना 'पद-लोलुपता पार हुई । धन से धर्म नही होता यह वृत्ति सफल साकार हुई ।। कटे कप्ट धर्मस्थानो के जिन शासन का सत्व मिला। जीवन को आलोकित करने वाला अभिनव तत्त्व मिला ॥॥ वाचिका, कायिक और मानसिक सयम प्रात्म-शुद्धि पथ है। यही धर्म है, मोक्ष मर्म है कठिन कर्म है, वितय है ।। [५१

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