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हम में हो अतुल मनोबल, कायरता क्षय हो बल जल, अविरल ऐसी करुणा का स्रोत वहा रे ॥ ६॥
श्रुति में, स्मृति में, संस्कृति में, रमते रहो तुम कृति कृति में, गूजे जग कोटि-कोटि 'तुलसी' जय नारे ||७||
वि० सं० २००५, चरम महोत्सव, छापर ( राज० )
[ श्रद्धेय के प्रति