Book Title: Shraddhey Ke Prati
Author(s): Tulsi Acharya, Sagarmalmuni, Mahendramuni
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 44
________________ दिल से शासन मे रमे, गुरु का हमे वरदान है । श्रात्म-सयम मे रमे, गुरु का हमे फरमान है । डोर सारे सघ की हो एक गुरु के हाथ मे, व्यक्ति व्यक्ति फिर मिले ज्यो दूध-पानी साथ मे, त्यागमय जीवन बने, वस इसमे सवकी शान है || १|| ໄປ कार्य जो शासन व्यवस्था के जरा प्रतिकूल हो, मत करो, मत प्रेरणा दो, मत ना ऐसी भूल हो, भावना हो सघ का में, सघ मेरा प्राण है ||२|| रात दिन अपने से अपना हो निरीक्षण लाजमी, आज कुछ मैंने किया ऐसी हो दिल मे दिल जमी, नियत दिनचर्या वने इसमे सदा उत्थान है ||३|| स्वय को या सघ को, ससार को घोसा न दो, करके कहनी मी ही करनी, वेग से आगे वढो, व्यक्ति, जाति, सघ का इसमे सदा कल्याण है ||४|| मत वनो पद की प्रतिष्ठा, नाम के भूखे कभी, पर वनो लाघव से लायक, पद प्रतिष्ठा के सभी, काम पीछे नाम, केवल नाम से नुक्सान है ||५|| तन मे जैसे प्राण, वैसे सघपति की शासना, रोज रग-रग मे रमे, फूलो मे जैसे वासना, हो सफल पल-पल सदा, जीवन का यह अभिमान है ||६|| गुरु ] लय - -रग लाती है हिना पत्थर पर घिस जाने के बाद [ ३१

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