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हैं अनुकरण उन्ही का करना,
हो कटिवद्ध कहो क्या डरना, कायरता नही सुहाए, उनको मन्तान मे ॥८॥
भाद्रव तेरस है स्मृति माधन,
वदन-वदन मे भिक्वन-भिक्ग्वन, 'तुलसी' पल सफल बनाए, गुरु के गुण-गान मे ।।९।।
रामायण दो हजार तीन की मवत नृपगढ मे पावस सत्सग। मुनि गुणतीम मती अट्ठावन तन-मन गुरु मेवा का रग ।। एक वीस छव गत युत सारे भिक्खन गण नन्दनवन मे। सघ चतुष्टय प्रमुदित 'तुलमी' अटल एक अनुशासन मे ।।
वि० सं० २००३, चरम महोत्सव, राजगढ (राज.)
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