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अहा ! अभिनव उच्छव छाए, तेरापन्थन में । मन उमड़ उमड़ घन आए, मण्डप मैदान मे ॥
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जैन जगत की अनुपम ख्याति, मद्गुरु मुक्ताफल मे ख्याति, साकार उतर कर सरसाए भिक्खन अभिधान में ॥ १ ॥
वाह माता दीपां की कुच्छी, मानो कल्पलता की गुच्छी, यदि तुलना हम कर पाएं, प्राची दिशि भान में ॥२॥
अब लों वह मरुधरा कहाए, क्यों न आज हम क्रान्ति उठाएं,
वसुगर्भा कह बतलाएं, जन सकल जहान में ॥३॥ वीर वीरता विश्व - विभूति, मूर्तिमती मानो मजबूतो, सतयुग की लहरें लाएं, कलियुग मध्याह्न में ॥४॥ आध्यात्मिक पथ एक पथिकता,
प्रतिभा पुंरंज विवेक अधिकता,
जिनवर की याद दिलाए, शिव-सुख सन्धान में || ५ ||
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ग्रन्थ-गठन, संगठन संघ में,
दूरदर्शी नव-नव प्रसंग में,
कर स्मरण शीश झुक जाए, सहसा सम्मान में ॥६॥
दृढ प्रतिज्ञ दिल निमल नगीना, प्रबल पराक्रमशाली सीना,
यश झल्लरी झण-हणणाए, सुरनर इक तान में ॥७॥
लय - माहे रमजान मे
[ श्रद्धेय के प्रति