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गुरु ]
हे सद्गुरु एक सहारा । है सुगुरु सूर्य के विना घोर अधियारा । है सद्गुरु एक सहारा । यह निराधार संसार, नयन विस्फार, देखते हारा ॥
अज्ञान भरा हे घट-घट मे, दुनिया प्रान्तर तम के पट मे, दिनकर भी कर न सकेगा जहा उजारा ॥१॥
तममावृत जन दिग्मूढ हुए, अपने को आप ही भूल गए, प्रतिकूल वह रही जव जीवन की धारा ॥२॥
घर-घर मे घुसे लुटेरे है, दुर्व्यसन जमाये डेरे ह, सर्वस्व लूट साते व कौन रुखारा ॥३॥
धनवान दुखी, वनहीन दुखी,
नही राज- प्रजा में एक सुखी, सबको अब सुख की राह दिखाने वारा ॥४॥
प्यासे को पानी, भूखे को भोजन, श्रावश्यक ज्यो देखो,
नौका मे नियामक ज्यो जग उजियारा ॥५॥
पापी महिपाल प्रदेशी से,
यदि मिले न सद्गुरु केशी से,
क्या सम्भव 'तुलसी' ऐसे हो निस्तारा ॥६॥
सय--है तेरा यौन सहारा
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