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लो ध्यान धरू, अभिधान स्मरू, प्रभु महावीर मैं तेरा। सब भार हरू,
उपहार करू,
यह मन मन्दिर प्रभु मेरा ।। त्रिशला के राजदुलारे, सिद्धारथ कुल उजियारे, त्रिभुवन के नयन सितारे,
चरम जिनराज, भवाब्धि जहाज, समस्त समाज, स्मरण से मिटा रहा अन्धेरा ॥१॥
तिथि तेरस जन्म तुम्हारा, सित पक्ष चंद्र का प्यारा, भारत को मिला सहारा,
महोछव मान, मिले मुर, रान, कि तीन जहान, निविडतम मे भी दिव्य उजेरा ॥२॥
सय गुण चग भग या लोटा
रेव]
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