Book Title: Shatkhandagama Pustak 09 Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay AmravatiPage 15
________________ १०३ १०९ ११३ षट्वंगगमकी प्रस्तावना कम नं. विषय पृष्ठ | क्रम.नं. विषय ३१ चारण ऋद्धि धारकोंके आठ २७ भूतबलि भट्टारकद्वारा किया भेद व उनका स्वरूप गया मंगल निबद्ध है या ३२ अभ्य चारण ऋद्धि धारकोंका अनिबद्ध, इस शंकाका समाधान १०३ उक्त आठोंमें यथासम्भव ५८ यह मंगल वेदना, वर्गणा और अन्तर्भाव ३३ प्रज्ञाश्रवणनमस्कारमें प्रक्षाके महाबंध, इन तीनों खण्डोंका मंगल है; इसकी सिद्धि चार भेद व उनका स्वरूप ५९ निमित्त,हेतु, नाम व प्रमाणकी ३४ आकाशगामित्व ऋद्धिका प्ररूपणा स्वरूप कर्तृप्ररूपणा १०७.१३० ३५ आशीविष ऋद्धि धारकोंका द्रव्यसे अर्थकर्ताको प्ररूपणामें १६ दृष्टिविष व दृष्टि-अमृत भगवान महावीरके शरीरका वर्णन ९०७ ___ऋद्धि धारकोंका स्वरूप ६१ क्षेत्रप्ररूपणामें समवसरण३७ उग्रतप ऋद्धि धारकोंके भेद मण्डलका वर्णन व उनका स्वरूप | ६२ वर्धमान भगवान्की सर्वज्ञता ३८ महातप ऋद्धि धारकोंका स्वरूप ६३ भावप्ररूपणामें जीवकी सचे. ३९ घोरतप ऋद्धि धारकोंका स्वरूप ९२ तनतासिद्धि ४. घोरपराक्रम और घोरगुण ६४ जीवकी शान-दर्शनस्वभावता। ऋद्धि धारकोंको नमस्कार ६५ कर्मों की अनित्यता ४१ अघोरगुणब्रह्मवारियोंका स्वरूप ६६ तीर्थोत्पत्तिकाल ४२ आम@षधि ऋद्धि ६७ भगवान् महावीरका गर्भा४३ खेलौषधि ऋद्धि वतरणकाल ४४ जल्लोषधि ऋद्धि ६८ केवलशान प्राप्त हो जानेपर ४५ विष्ठौषधि ऋद्धि भी दिव्यध्वानि न खिरनेका ४६ सर्वोषधि ऋद्धि कारण ४७ मनोबल ऋद्धि ६९ वर्धमान भगवान्की आयुपर ४८ वचनबल ऋद्धि मतभेद व तदनुसार गर्भस्थ४९ कायबल ऋद्धि कालादिकी प्ररूपणा ५० क्षीरनवी ऋद्धि ७० ग्रन्थकर्ताकी प्ररूपणाम गण ५१ सर्पिस्रवी ऋद्धि धरका स्वरूप ५२ मधुम्रवी ऋद्धि ७१ वर्धमान भगवान्के तीर्थमें ५३ अमृतम्रवी ऋद्धि प्रन्थकर्ता इन्द्रभूति गण५४ अक्षीणमहानस ऋद्धि न धरका वर्णन ५५ सर्व सिद्धायतनोंको नमस्कार १०२ | ७२ उत्तरोत्तरतंत्रकर्ताकी प्ररू. ५६ वर्धमान बुद्धर्षिको नमस्कार . १०३/ पणामें केवली व श्रुतकेवली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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