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संख्या १]
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सरस्वती-तट की सभ्यता
सुधार होने लगा । नुकीले पत्थरों के ऐसे सुधरे हुए औज़ार भारतवर्ष में इन धान्यों की उत्पत्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण 'यूलिथ' कहलाते हैं। इन यलिथों के काल की 'मानव- मिल गया है, अतः भारतवर्ष ही वह देश है जहाँ सबसे सभ्यता को 'यलिथ-सभ्यता' कहते हैं। ये यलिथ भी अन्य प्रथम मनुष्य-जाति ने खेती करना सीखा। यह एक पत्थरों-द्वारा छीलकर और अधिक उपयुक्त बनाये गये सर्वमान्य सिद्धान्त है कि जिस देश में कृषि का प्रारम्भ
और इनके उपयोग के समय की सभ्यता 'चिलियन- हा, वहीं सभ्यता का भी जन्म हश्रा है, अर्थात् सभ्यता सभ्यता' कहलाई। इसके पश्चात् और भी सुधार हुआ। की माता कृषि ही है। उस समय की सभ्यता 'मुस्टेरियन-सभ्यता' कहलाई । इन
सप्तसिन्धु हथियार-औज़ारों की सभ्यता के समय का मनुष्य अधिक कृषि के जन्मस्थान पश्चिमोत्तर-सीमाप्रान्त में चित्राल, अंशों में नर-वानर ( एप ) ही था और उसमें वास्तविक पश्चिम-कश्मीर आदि प्रदेश अति प्राचीन काल से ही मनुष्यत्व का बीजारोपण नहीं हुआ था। मुस्टेरियन- आर्य-जाति के निवासस्थान रहे हैं। आर्य-जाति ने ही सभ्यता के पश्चात् की 'रेनडियर-सभ्यता' आती है। सर्वप्रथम कृषि का आविष्कार किया। आर्यों के प्राचीनइसके समय के हथियार-ौज़ारों को देखने से पता चलता तम ग्रंथ ऋग्वेद में कृषि-जीवन का ही चित्र पाया जाता है कि इस समय मानव-जाति में मानवोचित बुद्धि का है। जिस भूमि में आर्यों-द्वारा कृषि का आविष्कार हुआ विकास होने लगा था। इसके पश्चात् की सभ्यतायें ही वह पार्वत्य प्रदेश होने के कारण इस कार्य के उपयुक्त वास्तविक मानव-सभ्यतायें कहलाती हैं। इनमें से पहली नहीं थी; अतः आर्यों को दक्षिण में पंजाब की उर्वरा सभ्यता नव-पाषाण-कालीन कही जाती है। इसके युग भूमि की ओर खिसकना पड़ा। यह प्रदेश कृषि-कार्य के का मनुष्य अपने जैसा ही वास्तविक मनुष्य था। आज लिए सर्वथा उपयुक्त था। इसमें से होकर सात नदियाँ भी अफ्रीका, प्रशान्त महासागर के द्वीप-पुंज तथा दक्षिण- बहती थीं। अतः इसका नाम 'सप्तसिन्धु' रक्खा गया । अमरीका की जंगली जातियों में यही सभ्यता पाई जाती है। सारा पंजाब, राजपूताने का उत्तरी और पश्चिमी भाग उनके शिकार तथा गृह-कार्य के हथियार-औज़ार तथा पात्र और सिन्ध इस सप्तसिन्धु के अन्तर्गत थे। सप्तसिन्धु की श्रादि पत्थरों के ही होते हैं। यूलिथ-सभ्यता से लेकर नदियों में सरस्वती और सिन्धु बहुत बड़ी थीं। सरस्वती नव-पाषाण-कालीन सभ्यता तक के काल को विद्वान् लोग सिन्धु से भी बड़ी थी। यों तो आर्य लोग सारे सप्तसिन्धु पाषाण-युग कहते हैं।
___ में फैल गये थे, परन्तु उनकी सभ्यता का केन्द्र सरस्वती कृषि का आविष्कार तथा सभ्यता का प्रारम्भ ही थी। इसका तटवर्ती प्रदेश उनके लिए बड़ा पवित्र
पाषाण-युग के पश्चात् मानव-जाति में धातु-युग का था। सरस्वती उस समय आर्यावर्त्त को दो सीमाओं में प्रादुर्भाव हुआ। धातु-युग का प्रारम्भ ताम्र-युग से होता विभक्त करती थी। इसके पश्चिम की ओर का भाग है । नव-पाषाण-युग के अंत तक मनुष्य की बुद्धि बहुत-कुछ 'उदीच्य तथा पूर्व की ओर का 'प्राच्य' कहलाता था। विकसित हो गई थी। इसी समय कृषि का आविष्कार इसी कारण इन देशों के निवासी आर्य 'प्राच्य' और हुआ। कश्मीर के पश्चिमी भाग और पश्चिमोत्तर-सीमा- 'उदीच्य' कहलाते थे। उत्तर-भ प्रांत के चित्राल-प्रदेश में घास की कुछ इस प्रकार की 'प्राच्य' और 'उदीच्य' दो भागों में विभक्त हैं । कान्यकुब्ज, जातियाँ प्राप्त हुई हैं जिनके क्रम-विकास-द्वारा ही गेहूँ और मैथिल आदि प्राच्य हैं तथा पंजाब, सिन्ध, सुराष्ट्र (काठियाजौ के पौधे उत्पन्न हुए हैं । गत वर्ष एक जर्मन अन्वेषक- वाड़) और गुजरात के ब्राह्मण उदीच्य हैं। इन्हीं दो दल इस विषय में अनुसंधान कर गया है और उसने शाखाओं में से सारी ब्राह्मण उपजातियाँ उत्पन्न हुई हैं । यही निष्कर्ष निकाला है कि भारत के इसी भभाग में सर्व- उदीच्य-प्रदेश सरस्वती के पश्चिमीतट देवयोनिवृत्त से प्रथम गेहूँ और जौ की उत्पत्ति हुई थी। अब तक मिस्र या मेसोपोटामिया तक फैला हुआ था और प्राच्य-प्रदेश की
मेसोपोटामिया गेहूँ का उत्पत्तिस्थान माने जाते थे। परन्तु सीमा इसके पूर्वी-तट से बंगाल तक थी। आर्य सरस्वती . इस बात का वहाँ कोई प्रमाण नहीं प्राप्त हुअा था। अब को इतना पवित्र क्यों मानते थे ? यह एक रहस्य-पूर्ण
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