________________
संख्या १]
रुपया
“सर जेम्स ग्रिग ने भारत सरकार की ओर से यह दूसरी बात यह है कि सभी मानते हैं कि अनाज का घोषणा की है कि वे रुपये का मौजूदा भाव कायम भाव बहुत मद्दा है। और इसकी वजह से किसानों को रक्खेंगे।" सर जेम्स ग्रिग ने यह भी कहा है कि "इसके बहुत कष्ट है। अगर रुपये (विनिमय) की दर घटा दी जाय विपरीत कोई भी फ़ैसला हिन्दुस्तान के हितों के खिलाफ़ तो अनाज का भाव बढ़ जायगा और इस प्रकार इस देश जायगा।" मुझे यह खेद के साथ कहना पड़ता है कि के रहनेवालों की बहुत बड़ी संख्या को बहुत काफ़ी गवर्नमेंट की यह घोषणा किसी भी प्रकार भारतवर्ष के हित सहायता पहुँच सकेगी। में नहीं कही जा सकती, क्योंकि भारतवर्ष का तो हित सबसे तीसरी बात यह है कि मध्यवर्ग की दुःख-जनक अधिक अाज इसी बात में है कि रुपये का भाव घटा बेरोज़गारी जो इस समय खूब बढ़ी हुई है, उसी समय दूर दिया जाय।
___ हो सकती है जब स्वदेशी व्यापार और व्यवसाय उन्नति - पहली बात तो यह है कि हिन्दुस्तान से विदेशों को करे। अगर रुपये (विनिमय) की दर घट जाय तो स्वदेशी सोने का लगातार ढोया जाना केवल इसी लिए है कि हमारा व्यापार और व्यवसाय को बहुत सहायता मिल जायगी। निर्यात-व्यापार इतना नहीं है कि आयात माल की कीमत इसलिए अगर देश के हित की बात की जाती है तो हम उससे पूरी करदें और सोने के भेजने की ज़रूरत न देश-हित तो निष्पक्ष आलोचक की दृष्टि से रुपये के मौजूदा पड़े। अगर रुपये की (विनिमय) दर मुनासिब तौर से भाव को कायम रखने में कदापि नहीं है। घटा दी जाय तो नतीजा यह होगा कि बैलेंस आफ़ ट्रेड अगर गवर्नमेंट इस विषय पर अपनी नीति बदल दे हमारे पक्ष में हो जायगा और सोने का प्रवाह रुक सकेगा। तो वह देश के साथ बहुत उपकार करेगी।
भविष्य का स्वप्न
लेखक, श्रीयुत गिरीशचन्द्र पन्त फिर जाग उठेंगे रोम रोम में
मानव रे, उठ, अब बीत चुकी । ज्ञान-प्रेम के सोम-सिन्धु,
___ कलि की सपनों-सी दुःख-रात । फिर बरस पड़ेंगे सृष्टि-हृदय में
लख, भीतर, देख, उमड़ पड़ते पूर्ण प्रेम के अमृत-विन्दु।
शत शत नव जीवन के प्रभात ! रे, विश्व-प्रेम की ज्वलित ज्वाल में
ये नव प्रभात, लो, लिये आ रहे, ___ जल जायेंगे दैन्य ताप ।
नव नव सत्यों की दिव्य सृष्टि, . रे, गूंज उठेगा प्रेम प्रेम का,
यह दिव्य सृष्टि भर लाई, . हृदय हृदय में अमर जाप ।
आलोक प्रेम की अमर वृष्टि। अब तुरत भस्म होगा रे संचित,
ओ अमर वृष्टि की मन्दाकिनि, अहंकार का अन्धकार ।
भर भर प्राणों में महोल्लास । रे, बाट जोहती जगन्मात
मानवता के ये आद्रे नेत्र, देगी प्राणों में अमृत ढार ।
रो रो थककर बैठे उदास। .
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com