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सरस्वती
[ भाग ३
५ गज़ २ गिरह मारकीन मिलने लगेगी । किसान ॥ क्योंकि उसके प्रतिद्वन्द्वी उन बाजारों में जहाँ उसका माल के बजाय ) गज़ मारकीन पा जायगा।
बिकता था, अब भारतवर्ष को नीचा दिखाकर अपना माल दूसरा उदाहरण लीजिए। अगर मुझे अाज एक बेच रहे हैं। भाव बढ़ने की कोई सम्भावना तो बहुत दिनों ब्रिटिश कार खरीदनी है। उसका दाम २४० पौंड है। तक नहीं दिखाई देती और चीज़ों की कीमतें ऐसे पैमाने पर १८ पेंस विनिमय की दर होने पर मुझे उस कार के लिए आकर रुक गई हैं कि उसे स्थिर हो कहना चाहिए। इस ३२००) देने होंगे। अगर विनिमय की दर २० पेंस हो देश में चीज़ों के बनाने या पैदा करने का ख़र्चमात्र भी जाय तो वही कार मुझे २८८०) में मिल जायगी। मुझे आज-कल कीमत से नहीं वसूल होता। ये ३२०) की बचत हो जायगी । ऐसी हालत में, साफ़ ज़ाहिर सिक्कों की कीमत घटाना स्थिति को नि: है, इस देश में मोटर की बिक्री बढ़ जायगी।
देता है। इससे भारतवर्ष में बेरोज़गारी बढ़ेगी। कर्ज़ का विनिमय की दर से निर्यात और आयात व्यापार पर भार ज़्यादा हो जायगा और अगर संसार के व्यापार में अंकुश रक्खा जा सकता है। अर्थ शास्त्र के इस सिद्धान्त कुछ गरमी आई तो हिन्दुस्तान उससे फायदा न उठा से फ़ायदा उठाकर स्वतन्त्र कौमें विनिमय की दर अपने सकेगा।" अनुकूल निश्चित करके अपने देश का आर्थिक संकट 'लीडर' का मत-अँगरेज़ी दैनिक 'लीडर' का मत मिटाने का प्रयत्न करती हैं।
है कि "भारतीय पत्रकार और व्यापारी बरसों से इस बात . इसी सिद्धान से प्रेरित होकर फ्रांस, इटली, स्वीज़- के लिए आन्दोलन कर रहे हैं कि रुपये का भाव घटा दिया लेंड आदि देशों ने अपने अपने सिक्कों की कीमत जाय, लेकिन गवर्नमेंट बिलकुल अटल रही है। गवर्नमेंट घटाई है।
अपनी मुद्रा-नीति वैदेशिक पूँजी के हित की दृष्टि से निश्चित राम्रीय और सरकारी धारणा-राष्ट्रीय पक्ष की करती है, भारतीय लोकमत से नहीं। यही कारण है कि यह धारणा है कि अगर गवनमेंट अपनी ज़िद छोड़ दे गवर्नमेंट 'विनिमय की दर घटाने का बराबर विरोध करती
और रुपये की कीमत १८ पेंस से घटा दे तो हिन्दुस्तान को रही है। निःसन्देह रुपये की कीमत में कमी कर देने का बहुत फायदा होगा।
प्रभाव यह पड़ेगा कि विदेशों में हमारे माल की बिक्री .. किन्तु सर जेम्स ग्रिग का अपना मत जुदा है। वे बढेगी, स्वदेशी बाज़ार में भी भाव में उन्नति होगी और समझते हैं कि रुपये का वर्तमान भाव कायम रखने में ही विदेशी माल का आना कम हो जायगा। भारतीय व्यवसाय हिन्दुस्तान की भलाई है। ग्रेट ब्रिटेन ने १९३१ में पर यह नीति संरक्षण का काम कर जायगी। लेकिन इसका गोल्ड-स्टैंडर्ड छोड़ा, रुपये का भाव काफ़ी घट गया। प्रभाव उन लोगों पर भी पड़ेगा जो अपनी आमदनी की अमरीका ने चाँदी की कीमत बढ़ाने का यत्न किया। बचत ब्रिटेन भेजते हैं। जब आर्थिक मामलों में ब्रिटिश इससे भी रुपये का भाव घटा है । इत्यादि इत्यादि। और भारतीय हितों में ज़ाहिरा संघर्ष हो, ब्रिटिश हित ही
श्री अडरकर का मत—इलाहाबाद-विश्व-विद्यालय सफलमनोरथ होता है। ....... 'मौजूदा नीति ब्रिटेन और के एक अध्यापक महोदय ने भी राष्ट्रीय पक्ष का समर्थन हिन्दुस्तान दोनों के लिए हानिकर है। किया है। वे लिखते हैं
श्री खेतान का मा-इस सम्बन्ध में इंडियन चेम्बर "यह बात अनिवार्य है कि योरपीय देशों का अपने अाफ़ कमर्स के फ़ेडरेशन के प्रमुख श्री खेतान ने अपना सिक्कों की कीमत घटाने का यह निश्चय योरप के साथ वक्तव्य प्रकाशित किया है। ये भी इसी सिद्धान्त का भारत के निर्यात-व्यापार पर विशेष अंकुश का काम समर्थन करते हैं कि रुपये की कीमत घटाई जाय। इनका करेगा। इस समय भारत के वैदेशिक व्यापार का लेखा तो यह मत है कि अगर भारत-सरकार रुपये के सम्बन्ध में उसके बहत खिलाफ है। अब उसकी हालत और भी राष्ट्रीय पक्ष के इस प्रस्ताव को मान ले तो हिन्दुस्तान की बदतर हो जायगी। हिन्दुस्तान इस बात के लिए चिल्ला अनेक समस्यायें हल हो सकती हैं। . रहा था कि उसके सिक्के की कीमत और भी घटाई जाय, श्री खेतान कहते हैं--
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