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संख्या १]
रुपया
प्रश्न यह था कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कैसे चलता है ? कर लें। लेकिन दुनिया की सभी गवर्नमेंट स्वदेशी और इसका नियम यह है कि पहले आयात (चाहे वह प्रत्यक्ष विदेशी सिक्के की सराफ़ी में हस्तक्षेप करती हैं और हो या अप्रत्यक्ष) की कीमत निर्यात के रूप में (चाहे वह कानून-द्वारा यह निश्चित करती हैं कि उनका भाव क्या प्रत्यक्ष हो या अप्रत्यक्ष) अदा की जाती है और अगर हो । जैसे भारत- सरकार ने सन् १९२७ में यह निश्चित . निर्यात से अायात ज़्यादा हुअा तो बैलेंस अाफ़ ट्रेड अपने कर दिया है कि एक रुपया का दाम एक शिलिंग छः पेंस खिलाफ़ माना जाता है। अगर आयात कम है और हो। जिस भाव पर एक मुल्क का सिक्का दूसरे मुल्क के निर्यात ज़्यादा तो बैलेंस अाफ़ ट्रेड अनुकूल कहा जाता है। सिक्के के रूप में भुनता है, अर्थशास्त्रीय परिभाषा में उसे
सोने का प्रवाह-अगर ऊपर बयान की हुई बातें 'विनिमय की दर' कहते हैं। हम अच्छी तरह समझ गये हैं तो हमें स्पष्ट हो जायगा कि विनिमय का व्यापार पर प्रभाव-विनिमय की दर हिन्दुस्तान जो कुछ माल विलायतों से खरीदता है उसके का देश की व्यापारिक स्थिति पर काफी प्रभाव पड़ता है। दाम वह अपने देश में पैदा हुई चीज़ों के रूप में अदा अगर अाज भारत-सरकार विनिमय की दर बदल दे, अर्थात् करता है। अप्रत्यक्ष पायात के लिए भी उसे स्वदेश की रुपये की कीमत एक शिलिंग ६ पेंस न रखकर कम या चीजें भेजनी होती है, अर्थात् जो करोड़ों रुपया क़र्ज़ के ज्यादा कर दे तो भारत के निर्यात और अायात व्यापार सूद के रूप में या पेंशनों के रूप में जाता है वह सबका पर बहुत प्रभाव पड़ जाय । अगर आज रुपया एक शिलिंग सब गेहूँ, चावल, जूट इत्यादि भारतीय उपज की सूरत में ६ पस का न रह कर एक शिलिंग ८ पेंस का हो जाय । उसे देना होता है। अगर अायात इतना अधिक हो गया तो हमारा निर्यात व्यापार बहुत ही कम हो जायगा। कि निर्यात की सूरत में अदा नहीं हो सका तो उसके बदले अँगरेज़ व्यापारी आज एक शिलिंग ६ पेंस देकर १० सेर में सोना जाता है। आज-कल भारतवर्ष का यही हाल है। गेहूँ भारत में खरीद सकता है। परन्तु विनिमय की दर के अरबों का सोना इस देश से विलायतों को चला गया और बदल जाने पर उसी १० सेर गेहूँ के लिए उसे १ शिलिंग बराबर जा रहा है केवल इसलिए कि हम विदेशों में अपना ८ पेंस देने पड़ेंगे, अर्थात् २ पेंस ज़्यादा । ऐसी स्थिति निर्यात-व्यापार इतना नहीं बढ़ा पाते कि उससे अपने में स्वाभाविक है कि वह भारत के बाज़ार में न ख़रीदकर
आयात की कीमत अदा कर सकें। उसकी पूर्ति के लिए किसी दूसरे बाज़ार में ख़रीदेगा, जहाँ उसे सस्ता मिलेगा। हमें सोना भेजना पड़ता है।
परिणाम यह होगा कि गेहूँ का दिसावर में जाना बन्द हो ___ इस प्रकार अायात, निर्यात और सोना ये तीनों जायगा । मारवाड़ी लोग गाँव और कस्बे कस्बे ख़रीद बन्द मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का लेखा-जोखा बराबर रखते कर देंगे। गेहूँ का भाव गिर जायगा। १० सेर के बजाय हैं। अगर निर्यात अायात से कम हो जाता है तो हमें वह ११ सेर का बिकने लगेगा। किसानों की आर्थिक सोना भेजना पड़ता है। अगर आयात कम हो जाता है तो दशा बदतर हो जायगी, क्योंकि वही मन भर गेहूँ जिसे सोना पाता है।
बेचकर वे ४) पा सकते थे, केवल ३||) का हो जायगा। एक बात और होती है। अगर हिन्दुस्तान में निर्यात इस तब्दीली का एक परिणाम और भी होगा। विलायती के मुकाबिले में आयात ज़्यादा हुअा तो हिन्दुस्तान के माल हिन्दुस्तान में सस्ता पड़ने लगेगा। आज जब विनिऊपर विदेशी व्यापारियों की हुंडी ज़्यादा होगी। ऐसी मय की दर १८ पेंस है (१ शिलिंग ६ पेंस , एक रुपया हालत में हिन्दुस्तान के सिक्के की कीमत अर्थात् रुपये देकर हम पाँच गज़ लङ्काशायर की बनी हुई मारकीन की कीमत में बट्टा लगने लगेगा। रुपये की कीमत घट खरीद लेते हैं, क्योंकि १८ पेंस में ५ गज़ मारकीन बेचने जायगी।
में ब्रिटिश व्यापारी का परता पड़ जाता है । अगर विनिमय विनिमय की दर- गवर्नमेंट अगर स्वदेशी और को दर बदल गई और रुपया २० पेंस का हो गया तो विदेशी सिक्कों के पारस्परिक सम्बन्ध को स्वतन्त्र छोड़ दें तो ब्रिटिश व्यापारी २० पेंस में ५ गज़ २ गिरह मारकीन परते अार्थिक शक्तियां उसका समतोल अपने ढंग से निश्चित के साथ दे सकेगा, अर्थात् एक रुपये में हिन्दुस्तान में
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