Book Title: Sanuwad Vyavharbhasya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 26
________________ (२५) १९३६-१९४१. सापेक्ष उपनिक्षेप में राजा द्वारा राजकुमारों की | २०२०-२०२२. रोग से अवधावन की चिकित्सा-परिपाटी, परिपाटी परीक्षाविधि। के चार घटक और उनका चिकित्सा-विवेक। १९४२-१९४८. नवस्थापित आचार्य का कर्त्तव्य और मुनियों की | २०२३-२०३०. रोग अवधावनोत्सुक मुनि की चिकित्सा-विधि। विभिन्न कार्यों के लिए नियुक्ति। २०३१-२०५२. भग्नव्रत की उपस्थापना और प्रायश्चित्त-विधि। १९४९-५१. सूत्रार्थ की वृद्धि न होने से उत्पन्न दोष और गुरु का २०५३-२०५६. प्रायश्चित्त की विस्मृति के चार कारण। अनुशासन। २०५७-२०६२. स्मरण-अस्मरण विषयक विवरण। १९५२. वृषभ द्वारा सारणा-वारणा। २०६३,२०६४. गणापक्रमण करने वाले का विवरण। १९५३-१९५५. गच्छ और गणी विषयक चार विकल्प। २०६५-२०६९. 'अट्टे लोए परिजुण्णे' सूत्र की व्याख्या। १९५६. स्थविरों द्वारा सारणा-वारणा। २०७०-२०७३. सूत्रार्थ का सही अर्थ जान लेने पर गणापक्रमण। १९५७-१९६९. आचारप्रकल्प के सूत्रार्थ से सम्पन्न और असम्पन्न २०७४. गुरु की आज्ञा की प्रधानता। अनगार के विहार का क्रम। २०७५-२०७८. अभिनिचारिकायोग का विवरण तथा प्रायश्चित्त। १९७०-१९७९. मुनि किसके साथ रहे-इस विवेक का विस्तृत २०७९,२०८०. चरिकाप्रविष्ट द्वितीय सूत्र की व्याख्या। वर्णन। २०८१. उपपात के एकार्थक। १९८०-१९८२. अपान्तराल में समनोज्ञ के साथ एक रात, तीन | २०८२,२०८३. मितगमन आदि का निर्देश तथा ध्रुव की व्याख्या। रात अथवा अधिक रात रहने के कारणों का निर्देश। २०८४. सूत्रगत 'वेउट्टिय' शब्द का भावार्थ कथन। १९८३-१९८९. वर्षावास में भिक्षा, वसति और शंका समाधान के | २०८५. कायसंस्पर्श की व्याख्या। लिए अन्यत्र गमन का विवेक। २०८६. स्मारणा, वारणा आदि भिक्षुभाव के घटक। १९९०-१९९२. आचार्य पद पर स्थापना विषयक विविध विकल्प। २०८७. गणमुक्त साधना करने के कुछ हेतु। १९९३-१९९८. जीवित अवस्था में पूर्व आचार्य द्वारा नए आचार्य आचार्य की अनुज्ञा के बिना गणमुक्त होने पर की स्थापना, परीक्षा और राजा का दृष्टान्त। प्रायश्चित्त। १९९९-२००३. मरण शय्या पर स्थित आचार्य का विवरण। २०९०. आचार्य द्वारा क्षेत्र की प्रतिलेखना। २००४-२००७. अगीतार्थ का मरणासन्न आचार्य को निवेदन। २०९१. क्षेत्र की प्रतिलेखना न करने के दोष। २००८,२००९. मरणासन्न आचार्य को अगीतार्थ मुनि द्वारा भय चरिकाप्रविष्ट आदि चार सूत्रों की नियुक्ति। दिखाना। चरिका से निवृत्त विपरिणत मुनि विषयक विवरण २०१०. भिन्न देश से आए मुनि की अनर्हता। और प्रायश्चित्त। २०११. वाचक और निष्पादक ही आचार्य की योग्य। |२१०२,२१०३. विदेश अथवा स्वदेश में दूर प्रस्थान करने की विधि। २०१२. आचार्य द्वारा अनुमत शिष्य को गण न सौंपने पर | २१०४,२१०५. उपसंपद्यमान की परीक्षा। प्रायश्चित्त। २१०६,२१०७. परीक्षा में अनुत्तीर्ण साधुओं का विसर्जन। २०१३. अयोग्य मुनि द्वारा आचार्य पद न छोड़ने पर २१०८-२११२. प्रतीच्छक कितने समय तक प्रतीच्छक ? प्रायश्चित्त। २११३-२११६. निर्गम की अनुज्ञा और उसकी यतना। २०१४. आचार्य द्वारा अनुमत शिष्य यदि विशेष साधना २११७. आभवद् व्यवहार विधि तथा प्रायश्चित्त-विधि। पर जाए तो अन्य मुनि को निर्मापित करने की २११८-२१२४. आगाढ और अनागाढ़ स्वाध्याय भूमि का प्रार्थना। कालमान। २०१५. विशेष साधना की अपेक्षा गच्छ का परिचालन २१२५-२१२७. योग को वहन करने वाले मुनि के योग का भंग कब विपुल निर्जरा का कारण। कैसे? २०१६. गीतार्थ मुनियों के कथन पर यदि कोई आचार्य पद | २१२८-२१३६. योग विसर्जन का कारण और विधि। का परिहार न करे तो प्रायश्चित्त। २१३७-२१४६. निर्विकृतिक आहार-विधि तथा अन्य विवरण। २०१७. आचार्य के प्रति शिष्य का अवश्यकरणीय कर्त्तव्य। | २१४७-२१४९. माया से योग विसर्जन का परिणाम। २०१८.२०१९. आचार्य और उपाध्याय का रोग और मोह के कारण २१५०-५७. मायावी मुनि के व्यवहार के अनेक कोण। अवधावन। २१५८. नालबद्ध और वल्लीबद्ध के प्रकार और व्यक्तियों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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