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सम्यक्त्व-कौमुदी --
इसी समय निर्मल चन्द्रमाका उदय हुआ । राजाको कामने सताया । उसे अपनी प्रियाकी याद आई, पर रानी महल में न थी । इसलिए उसके हृदय में चिन्ता उत्पन्न हो गई और निद्रा यह समझ कर, कि मेरी दूसरी सोत आगई, भाग गई । बहुत चेष्टा करने पर भी जब निद्रा न आई तब राजाने मंत्री को बुलाकर कहा - अमात्यराज, जहाँ पर मेरी रानी विलास कर रही है, उस उपवनमें मैं भी क्रीड़ाके लिए जाना चाहता हूँ। यह बात सुनकर सुबुद्धि मंत्री बोलामहाराज, ऐसे समय यदि आप उपवनमें जायँगे तो शहर के सब लोगों से आपका विरोध होगा और विरोध होजानेसे आपके सारे राज्यका विनाश हो जायगा । नीतिकारोंने भी कहा है कि बहुतों के साथ विरोध नहीं करना चाहिए; क्योंकि बहुतों को जीतना कठिन है । देखिए, बड़े भारी गजराजको छोटी छोटी चीटियाँ भी मार डालती हैं ।
मंत्री हृदयकी बात जानकर अनादरसे और घमंडसे राजा बोला -- जब मैं क्रोध करूँगा तब ये नीच नागरिक मेरा क्या कर सकते हैं ? अपने मनसे जन्मके वैरको भुलाकर भेड़िया अगर मृगोंसे आदर पूर्वक मैत्रीभाव स्थापित करले, तो क्या वह उस सिंहका भी सामना कर सकता है, जो सिंह हाथी के मस्तकको चीर कर मुक्ताफल निकाल उनकी ज्योतिसे अपने बालोंको चमकाता है । यह सुनकर मंत्री बोला - महाराज, यह सब ठीक है, पर थोड़ा विचार कर
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