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सम्यक्त्व-कौमुदी
दिया, जो अपने काममें सदा सावधान रहा करते थे । क्योंकि जिस तरह नदियोंका, नखवाले और सींगवाले जानवरोंका तथा हथयारवाले लोगोंका विश्वास नहीं करना चाहिए उसी तरह स्त्रियोंका और राजकुलका भी विश्वास नहीं करना चाहिए । जब राजाकी आज्ञासे शहरकी सब स्त्रियाँ नानाभांति शृंगार कर बागमें जानेको तैयार हुई तब राजाने शहरके सब मनुष्योंको बुला कर कहा-आप लोग शहरहीमें अमोद प्रमोद और क्रीड़ा-विनोद करें-आनंद मनावें । यह सुनकर अर्हदास राजसेठने विचारा कि आज मैं अपने परिवारके साथ जिनमन्दिरोंमें पूजा और वन्दना कैसे करूँगा। इसके बाद ही उसने एक प्रयत्न किया। वह यह कि एक सोनेकी थालीमें बहुतसे कीमती और सुन्दर रत्नाको भरकर वह राजाके पास गया। राजाके आगे उस थालीको रख कर उसने प्रणाम किया। राजाने सेठसे पूछा-सेठ महाशय, कहिए कैसे आपका आना हुआ? सेठ विनयसे झुक गये मस्तक पर अंजलि लगाकर बोलामहाराज, मैंने आज श्रीवर्धमान भगवान्के पास चार महीनेका व्रत लिया है । तथा यह नियम भी लिया है कि पाँच दिनमें सम्पूर्ण जिनमन्दिरोंकी और साधुओंकी विधि पूर्वक वन्दना करूँगा तथा रातको एक मन्दिरमें महापूजा करूँगा और गीत नृत्यादिक उत्सव करूँगा । इसलिए मुझे आप ऐसी आज्ञा दीजिए कि जिसमें मेरे नियमका भंग न हो
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