Book Title: Samyaktva Kaumudi
Author(s): Tulsiram Kavyatirth, Udaylal Kasliwal
Publisher: Hindi Jain Sahityik Prasarak Karayalay

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Page 10
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदितोदय राजाकी कथा । उत्तरमथुराके राजा पद्मोदयने अपना राज्य उदितोदय पुत्रको देकर जिनदीक्षा लेली । उदितोदय सुखसे राज्य करने लगा । उदितोदय अपने बगीचे में प्रतिवर्ष कौमुदी महोत्सव करवाता था। जब कार्तिक मासके शुक्ल पक्षी पूर्णमाका दिन आया तब उसने नगर में डौंड़ी पिटवाई कि आज सारे शहर की स्त्रियाँ वनक्रीड़ाके लिए बागमें जावें और रातभर वहीं रहें तथा सब लोग शहरमें रहें । यदि कोई भी बागमें स्त्रियोंके पास जायगा तो वह राजद्रोही ठहरेगा । राजाने इतना और भी कहलाया था कि नृत्य, गीत, विनोद भरी, वनक्रीड़ा करके जब स्त्रियाँ बाग से लौटें तब बड़े ही आमोद प्रमोद के साथ वे शहरमें आवें । इस घोषणाको सुन कर कोई भी बगीचे में नहीं गया । शहरके सब लोगोंने राजाकी आज्ञाका पालन किया । इससे राजा बड़ा प्रसन्न हुआ । राजाने तब इस नीतिको स्मरण किया - पूज्य जनोंका तिरस्कार, और स्त्रियोंकी पति से अलहदी शय्या जिस तरह मरणके समान है उसी तरह राजाओं को अपनी आज्ञाका भंग होना मरणके समान है । तथा जिस तरह तपका फल ब्रह्मचर्य है, विद्याका फल ज्ञानकी प्राप्ति हैं, और धनका फल दान और भोगोपभोग "है, उसी तरह राज्यका भी यही फल है कि उस राज्यमें राजाकी आज्ञाका भंग तथा मंत्रका भेद न हो । इत्यादि विचार कर राजाने चारों दिशाओं में सामन्तोंका पहरा बैठा For Private And Personal Use Only

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